सुर्खी एक दिन की ....
>> Monday, September 22, 2008
सोच की आंधी
कुछ इस तरह चली है
की सारे जज़्बात
जैसे उड़ से गए हैं ।
मन के किसी कोने से
एक विश्वास झांकता है
कि कभी तो भय मुक्त हो
हम विचरण कर सकेंगे
आज के हालात ने
इंसान को पत्थर बना दिया है
कहीं किसी के मन में कोई
संवेदना बाकी नही है ।
ज्यों अखबार की ख़बरों को
पी जाते हैं चाय के साथ
बम के धमाकों को भी
पानी समझ के पी गए हैं ।
अब ऐसी ख़बरों से कोई
चौंकता नही है
ज्यों होती हैं ज़िन्दगी में
आम सी दुर्घटनाएं
इनको भी ऐसे ही आम
घटना कहने लगे हैं
एक दिन ख़बरों में चर्चा
सुर्खी बन कर छा जाती है
और फिर सब यूँ ही
जी लेते हैं ज़िन्दगी
जैसे कि हादसों को सब
भूल ही चुके हैं
याद रखते हैं इन घटनाओं को
बस वो ही लोग
जिनके घर के लोग
इन हादसों में मर चुके हैं ।
कोई तो कह दे उन
हत्त्यारों से जा कर
हम सब अब सिर पर
कफ़न बाँध चुके हैं.
10 comments:
ek baar phir vishesh vishay par bahut vishesh vichar
Anil
ek alag soch par alag vichar bahut ache lage.
yunhi apne jazbaaton ko likhti rahiye
nira
insan ki fitrat men shayad dard raha hi nahin hai, khud ka bhi dusron ka bhi. aek mashini jindagi jeete jeete, hum itne kudhparast ho gayen hai ki, har cheej ko 'chalta hey' ke raan men dekhne lagten hai. sachmuch aap ki yah rachna aankhe baand kiye insanon ko keh rahi hai 'jago', apne insan hone ka tanik parichay do, mehsoos karo khud ko rakh kar un peediton ki jagaha jo tumehe baas aam ghatnaon ke parinam dikhten hai. Superb ! N & A.
sha ki tarayh ..sundar
samayik vishay par rachi hui yah rachna man ki vyatha ko abhivyakti de rahi hai . Bahut khub...........
आँधियाँ तो सब ले जाती हैं,
और सोच की आँधी में तो आदमी
बह जाता है ............बस आम चर्चा रह जाती है
Sangeeta ji,Aapne bahut hi achha likha hai.Dil ko chhu jane wala.
Sandeep
sandeep.nmdc@gmail.com
अतिवादिता से पीड़ित संवेदनहीन होते जा रहे मानस को प्रकम्पित करती है आपकी बात...
इस प्रयास पर साधुवाद..
बहुत सुन्दर रचना।
आपकी पुरानी नयी यादें यहाँ भी हैं .......कल ज़रा गौर फरमाइए
नयी-पुरानी हलचल
http://nayi-purani-halchal.blogspot.com/
बहुत सुन्दर रचना।
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